कविता संग्रह >> खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँहरे प्रकाश उपाध्याय
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विवादी समय में पूछना बहुत ज़रूरी है/ यह पूछो कि पानी में अब कितना पानी है/ आग में कितनी आग है, आकाश अब भी कितना आकाश है...
हरे प्रकाश उपाध्याय हिन्दी की नयी पीढ़ी के संवेदनशील एवं
सजग कवि हैं। कविताएँ स्वगत या एकालाप शैली में नहीं हैं। एकालाप या स्वगत
शैली में ही कवि सम्प्रेषणीयता का तिरस्कार कर सकता है, इस गुमान में कि
वह गहरी बात कर रहा है। गहरी बात कहने वाले शमशेर कहते थे–बात
बोलेगी। लेकिन अनेक कवियों की बात बोलती नहीं। हरे प्रकाश गूँगी कविताओं
के कवि नहीं हैं। वे पाठकों से सीधे और सीधी बात करते हैं। कविताओं के
ज़रिए वे पाठकों को सवाल पूछने की प्रेरणा देते हैं। ऐसे सवाल जो ऐतिहासिक
एवं सांस्कृतिक संवेदना को धार देते हैं। शैली और वाक्यों के इस सीधेपन
में हमारे समय की युगीन जटिलताएँ लिपटी हैं और कविताएँ उन जटिल परतों को
उद्घाटित करती हैं। फलतः इन कविताओं को पढ़ना अपने समय और अपने समय की समस्याओं को पढ़ना है।
विवादी समय में पूछना बहुत ज़रूरी है। यह पूछो कि पानी में अब कितना पानी है। आग में कितनी आग है, आकाश अब भी कितना आकाश है।
सवाल जितना सीधा है, उतनी ही सीधी भाषा है और उतना ही अनिवार्य है। शायद मानव इतिहास का अभूतपूर्व संकट यानी पंच महाभूतात्मक संकट। इस सवाल के ज़रिए आप आज की उस मानवघाती अपसंस्कृति तक पहुँच जाएँगे जो मनुष्य से उसके पंचमहाभूतों तक को छीनकर सीधे बाज़ार में बेचने का उपक्रम कर रही है।
हरे प्रकाश उपाध्याय ज़मीनी हक़ीक़त के कवि हैं। जिस ज़मीन पर उनकी संवेदना उगी है वह मूलतः उनके गाँव-जवार की है। कविताओं के पात्र अधिकांश गाँव के–विशेषतः नारियाँ और उनमें लड़कियाँ और वृद्धाएँ हैं। उनका वर्णन, विवरण और यत्किंचित चित्रण कथात्मक है। आज की अच्छी कविता में जो कथात्मकता आ गयी है उसका उपयोग-प्रयोग कवित्व को समृद्ध करता है।
विवादी समय में पूछना बहुत ज़रूरी है। यह पूछो कि पानी में अब कितना पानी है। आग में कितनी आग है, आकाश अब भी कितना आकाश है।
सवाल जितना सीधा है, उतनी ही सीधी भाषा है और उतना ही अनिवार्य है। शायद मानव इतिहास का अभूतपूर्व संकट यानी पंच महाभूतात्मक संकट। इस सवाल के ज़रिए आप आज की उस मानवघाती अपसंस्कृति तक पहुँच जाएँगे जो मनुष्य से उसके पंचमहाभूतों तक को छीनकर सीधे बाज़ार में बेचने का उपक्रम कर रही है।
हरे प्रकाश उपाध्याय ज़मीनी हक़ीक़त के कवि हैं। जिस ज़मीन पर उनकी संवेदना उगी है वह मूलतः उनके गाँव-जवार की है। कविताओं के पात्र अधिकांश गाँव के–विशेषतः नारियाँ और उनमें लड़कियाँ और वृद्धाएँ हैं। उनका वर्णन, विवरण और यत्किंचित चित्रण कथात्मक है। आज की अच्छी कविता में जो कथात्मकता आ गयी है उसका उपयोग-प्रयोग कवित्व को समृद्ध करता है।
–डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
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